Wednesday, October 14, 2015
Sunday, October 11, 2015
देने वाला जब भी देता
एक गाँव में रामू नाम का एक किसान रहता था,वह बहुत ही ईमानदार और भोला भाला था, वह सदा ही दूसरों की सहायता करने के लिए तैयार रहता था, एक बार की बात है कि शाम के समय वह दिशा मैदान (शौच) के लिए खेत की ओर गया, दिशा मैदान करने के बाद वह ज्योंही घर की ओर चला त्यों ही उसके पैर में एक अरहर की खूँटी (अरहर काटने के बाद खेत में बचा हुआ अरहर के डंठल का थोड़ा बाहर निकला हुआ जड़ सहित भाग) गड़ गई, उसने सोचा कि यह किसी और के पैर में गड़े इससे अच्छा है कि इसे उखाड़ दूँ, उसने जोर लगाकर खूँटी को उखाड़ दिया, खूँटी के नीचे उसे कुछ सोने कीअशरफियाँ दिखाई दीं,उसकेदिमाग में आया कि यह पता नहीं किसका है मैं क्यों लूँ अगर ये अशरफियाँ मेरे लिए हैं तो जिस राम ने दिखाया,वह घर भी पहुँचाएगा (जो राम दीखाई है उसे घरे पहुँचाएगे) ...
इसके बाद वह घर आकर यह बात अपने पत्नी को बताई, रामू की पत्नी उससे भी भोली थी; उसने यह बात अपने पड़ोसी को बता दी, पड़ोसी बड़ा ही घाघ था, रात को जब सभी लोग खा-पीकर सो गए तो पड़ोसी ने अपने घरवालों को जगाया और कहा, ”चलो, हमलोग अशरफी कोड़ (खोद) लाते हैं,” पड़ोसी और उसके घरवाले कुदाल आदि लेकर खेत में पहुँच गए, उन्होंने बताई हुई जगह पर कोड़ा (खोदा), सभी अवाक थे क्योंकि वहाँ एक नहीं पाँच-पाँच बटुलियाँ (धातु का एक पात्र) थीं पर सबमें अशरफियाँ नहीं अपितु बड़े-बड़े पहाड़ी बिच्छू थे, पड़ोसी ने कहा कि रामू ने हम लोगों को मारने की अच्छी योजना बनाई थी, हमें इसका प्रत्युत्तर देना ही होगा, उसने अपने घरवालों से कहा कि पाँचों बटुलियों को उठाकर ले चलो और रामू का छप्पर फाड़कर इन बिच्छुओं को उसके घर में गिरा दो ताकि इन बिच्छुओं के काटने से मियाँ-बीबी की इहलीला समाप्त हो जाए, घरवालों ने वैसा ही किया और रामू के छप्पर को फाड़कर बिच्छुओं को उसके घर में गिराने लगे, लेकिन धन्य है ऊपरवाला और उसकी लीला, जब ये बिच्छू घर में आते थे तो अशरफी बन जाते थे, सुबह-सुबह जब रामू उठा तो उसने अशरफियों को देखा, उसने भगवान को धन्यवाद दिया और अपनी पत्नी से कहा, ”देखी! देने वाला जब भी देता, देता छप्पर फाड़ के,”
निरपेक्ष दान
राजा जानुश्रुति अपने समय के महान दानी थे।एक शाम वह महल की छत पर विश्राम कर रहे थे,तभी सफेद हंसों का जोड़ा आपस में बात करता आकाश-मार्ग से गुजरा हंस अपनी पत्नी से कह रहा था।क्या तुझे राजा जानुश्रुति के शरीर से निकल रहा यश प्रकाश नहीं दिखाई देता। बचकर चल, नहीं तो इसमें झुलस जाएगी।हंसिनी मुस्कराई, प्रिय मुझे आतंकित क्यों करते हो क्या राजा के समस्त दानों में यश निहित नहीं है, इस लिए मैं ठीक हूं जबकि संत रैक्व एकांत साधना लीन हैं उनका तेज देखते ही बनता है।व हीं सच्चे अर्थों में दानी हैं।जानुश्रुति के ह्दय में हंसो की बातचीत कांटों की तरह चुभी। उन्होंने सैनिकों को संत रैक्व का पता लगाने का आदेश दिया। बहुत खोजने पर किसी एकांत स्थान में वह संत अपनी गाड़ी के नीचे बैठे मिले।जानुश्रुति राजसी वैभव से अनेक रथ, घोड़े, गौ और सोने की मुद्राएं लेकर रैक्व के पास पहुंचे। रैक्व ने बहुमूल्य भेटों को अस्वीकार करते हुए कहा कि मित्र यह सब कुछ ज्ञान से तुच्छ है ज्ञान का व्यापार नहीं होता। राजा शर्मिंदा होकर लौट गए कुछ दिन बाद वह खाली हाथ, जिज्ञासु की तरह रैक्व के पास पहुंचे। रैक्व ने राजा की जिज्ञासा देखकर उपदेश दिया कि दान करो,किंतु अभिमान से नहींउदारता की, अहं से नहीं, उन्मुक्त भाव से दान करो। राजा रैक्व की बात सुनकर प्रभावित हुए और लौट गए दान हमेशा निश्छल भाव से करना चाहिए।
Tuesday, October 6, 2015
बंजारे की बुद्धि
एक बंजारा था। वह बैलों पर मिट्टी (मुल्तानी मिट्टी) लादकर दिल्ली की तरफ आ रहा था। रास्ते में कई गांवो से गुजरते समय उसकी बहुत-सी मिट्टी बिक गई। बैलों की पीठ पर लदे बोरे आधे तो खाली हो गए और आधे भरे रह गए।अब वे बैलों की पीठ पर कैसे टिकें क्योंकि भार एक तरफ ज्यादा हो गया था।नौकरों ने पूछा कि क्या करें बंजारा बोला अरे सोचते क्या हो बोरों के एक तरफ रेत (बालू) भर लो। यह राजस्थानी जमीन है, यहां रेत बहुत है। नौकरों ने वैसा ही किया। बैलों की पीठ पर एक तरफ आधे बोरे में मिट्टी हो गई और दूसरी तरफ आधे बोरे में रेत हो गई।दिल्ली से एक सज्जन उधर आ रहे थे। उन्होंने बैलों पर लदे बोरों में से एक तरफ रेत गिरते हुए देखी तो बोले कि बोरों में एक तरफ रेत क्यों भरी है नौकरों ने कहा- 'सन्तुलन करने के लिये वे सज्जन बोले-अरे यह तुम क्या मूर्खता करते हो तुम्हारा मालिक और तुम एक से ही हो। बैलों पर मुफ्त में ही भार ढोकर उनको मार रहे हो मिट्टी के आधे-आधे दो बोरों को एक ही जगह बांध दो तो कम-से-कम आधे बैल तो बिना भार के चलेंगे।
नौकरों ने कहा कि आपकी बात तो ठीक जंचती है, पर हम वही करेंगे, जो हमारा मालिक कहेगा। आप जाकर हमारे मालिक से यह बात कहो और उनसे हमें आदेश दिलवाओ। वह राहगीर (बंजारे) से मिला और उससे बात कही। बंजारे ने पूछा कि आप कहां के हैं कहां जा रहे हैं उसने कहा कि मैं भिवानी का रहने वाला हूं रुपए कमाने के लिए दिल्ली गया था। कुछ दिन वहां रहा, फिर बीमार हो गया। जो थोड़े रुपए कमाए थे, वे खर्च हो गये। व्यापार में घाटा लग गया। पास में कुछ रहा नहीं तो विचार किया कि घर चलना चाहिये।उसकी बात सुनकर बंजारा नौकरों से बोला कि इनकी सलाह मत लो।अपने जैसे चलते हैं, वैसे ही चलो।इनकी बुद्धि तो अच्छी दिखती है, पर उसका नतीजा ठीक नहीं निकलता नहीं तो ये अबतक धनवान हो जाते। हमारी बुद्धि भले ही ठीक न दिखे, पर उसका नतीजा ठीक होता है मैंने कभी अपने काम में घाटा नहीं उठाया बंजारा अपने बैलों को लेकर दिल्ली पहुंचा। वहां उसने जमीन खरीदकर मिट्टी और रेत दोनों का अलग-अलग ढेर लगा दिया और नौकरों से कहा कि बैलों को जंगल में ले जाओ और जहां चारा-पानी हो, वहां उनको रखो।यहां उनको चारा खिलायेंगे तो नफा कैसे कमाएंगे मिट्टी बिकनी शुरु हो गई।उधर दिल्ली का बादशाह बीमार हो गया।बादशाह के हकीम ने सलाह दी कि अगर बादशाह राजस्थान के धोरे (रेत के टीले) पर रहें तो उनका शरीर ठीक हो सकता है। रेत में शरीर को निरोग करने की शक्ति होती है। इसलिए बादशाह को राजस्थान भेज देना ठीक रहेगा।तब एक दरबारी ने कहा कि राजस्थान क्यों भेजें वहां की रेत यहीं मंगा लेते हैं,अरे यह दिल्ली का बाजार है, यहां सब कुछ मिलता है मैंने एक जगह रेत का ढेर लगा हुआ देखा है।'बादशाह-अच्छा तो फिर जल्दी रेत मंगवा लो।बादशाह के आदमी बंजारे के पास गए और उससे पूछा कि रेत क्या भाव है ? बंजारा बोला कि चाहे मिट्टी खरीदो, चाहे रेत खरीदो, एक ही भाव है। दोनों बैलों पर बराबर तुलकर आए हैं।
बादशाह के - कारिंदों ने वह सारी रेत खरीद ली अगर बंजारा दिल्ली से आए उस सज्जन की बात मानता तो ये मुफ्त के रुपए कैसे मिलते । जाहिर तौर पर बंजारे की बुद्धि ठीक काम करती थी।
Sunday, October 4, 2015
पंचतंत्र की कहानी:बडे नाम का चमत्कार
एक समय की बात है एक वन में हाथियों का एक झुंडरहता था। उस झुंड का सरदार चतुर्दंत नामक एकविशाल, पराक्रमी, गंभीर व समझदार हाथी था। सबउसी की छत्र-छाया में शुख से रहते थे। वह सबकीसमस्याएं सुनता। उनका हल निकालता, छोटे-बडेसबका बराबर ख्याल रखता था। एक बार उस क्षेत्र मेंभयंकर सूखा पडा। वर्षों पानी नहीं बरसा। सारेताल-तलैया सूखने लगे। पेड-पौधे कुम्हला गए धरती फट गई,चारों और हाहाकार मच गई। हर प्राणी बूंद-बूंद के लिएतरसता गया। हाथियों ने अपने सरदार से कहा“सरदार, कोई उपाय सोचिए। हम सब प्यासे मर रहे हैं।हमारे बच्चे तडप रहे हैं।”चतुर्दंत पहले ही सारी समस्या जानता था। सबके दुखसमझता था पर उसकी समझ में नहीं आ रहा था किक्या उपाय करे। सोचते-सोचते उसे बचपन की एक बातयाद आई और चतुर्दंत ने कहा “मुझे ऐसा याद आता हैं किमेरे दादाजी कहते थे, यहां से पूर्व दिशा में एक ताल हैं,जो भूमिगत जल से जुडे होने के कारण कभी नहीं सूखता।हमें वहां चलना चाहिए।” सभी को आशा की किरणनजर आई।हाथियों का झुंड चतुर्दंत द्वारा बताई गई दिशा कीओर चल पडा। बिना पानी के दिन की गर्मी में सफरकरना कठिन था, अतः हाथी रात को सफर करते।पांच रात्रि के बाद वे उस अनोखे ताल तक पहुंच गए।सचमुच ताल पानी से भरा था सारे हातियों ने खूबपानी पिया जी भरकर ताल में नहाए व डुबकियांलगाईं।उसी क्षेत्र में खरगोशों की घनी आबादी थी। उनकीशामत आ गई। सैकडों खरगोश हाथियों के पैरों-तलेकुचले गए। उनके बिल रौंदे गए। उनमें हाहाकार मच गया।बचे-कुचे खरगोशों ने एक आपातकालीन सभा की। एकखरगोश बोला “हमें यहां से भागना चाहिए।”एक तेज स्वभाव वाला खरगोश भागने के हक में नहींथा। उसने कहा “हमें अक्ल से काम लेना चाहिए। हाथीअंधविश्वासी होते हैं। हम उन्हें कहेंगे कि हम चंद्रवंशीहैं। तुम्हारे द्वारा किए खरगोश संहार से हमारे देवचंद्रमा रुष्ट हैं। यदि तुम यहां से नहीं गए तो चंद्रदेव तुम्हेंविनाश का श्राप देंगे।”एक अन्य खरगोश ने उसका समर्थन किया “चतुर ठीककहता हैं। उसकी बात हमें माननी चाहिए। लंबकर्णखरगोश को हम अपना दूत बनाकर चतुर्दंत के पास भेंजेगे।”इस प्रस्ताव पर सब सहमत हो गए। लंबकर्ण एक बहुत चतुरखरगोश था। सारे खरगोश समाज में उसकी चतुराई कीधाक थी। बातें बनाना भी उसे खूब आता था। बात सेबात निकालते जाने में उसका जवाब नहीं था। जबखरगोशों ने उसे दूत बनकर जाने के लिए कहा तो वह तुरंततैयार हो गया। खरगोशों पर आए संकट को दूर करके उसेप्रसन्नता ही होगी। लंबकर्ण खरगोश चतुर्दंत के पासपहुंचा और दूर से ही एक चट्टान पर चढकर बोला“गजनायक चतुर्दंत, मैं लंबकर्ण चन्द्रमा का दूत उनका संदेशलेकर आया हूं। चन्द्रमा हमारे स्वामी हैं।”चतुर्दंत ने पूछा ” भई,क्या संदेश लाए हो तुम ?”लंबकर्ण बोला “तुमने खरगोश समाज को बहुत हानिपहुंचाई हैं। चन्द्रदेव तुमसे बहुत रुष्ट हैं। इससे पहले कि वहतुम्हें श्राप देदें, तुम यहां से अपना झुंड लेकर चले जाओ।”चतुर्दंत को विश्वास न हुआ। उसने कहा “चंद्रदेव कहां हैं?मैं खुद उनके दर्शन करना चाहता हूं।”लंबकर्ण बोला “उचित हैं। चंद्रदेव असंख्य मॄत खरगोशोंको श्रद्धांजलि देने स्वयं ताल में पधारकर बैठे हैं, आईए,उनसे साक्षात्कार कीजिए और स्वयं देख लीजिए किवे कितने रुष्ट हैं।” चालाक लंबकर्ण चतुर्दंत को रात मेंताल पर ले आया। उस रात पूर्णमासी थी। ताल में पूर्णचंद्रमा का बिम्ब ऐसे पड रहा था जैसे शीशे मेंप्रतिबिम्ब दिखाई पडता हैं। चतुर्दंत घबरा गयाचालाक खरगोश हाथी की घबराहट ताड गया औरविश्वास के साथ बोला “गजनायक, जरा नजदीक सेचंद्रदेव का साक्षात्कार करें तो आपको पता लगेगाकि आपके झुंड के इधर आने से हम खरगोशों पर क्याबीती हैं। अपने भक्तों का दुख देखकर हमारे चंद्रदेवजी केदिल पर क्या गुजर रही है|”लंबकर्ण की बातों का गजराज पर जादू-सा असर हुआ।चतुर्दंत डरते-डरते पानी के निकट गया और सूंड चद्रंमा केप्रतिबिम्ब के निकट ले जाकर जांच करने लगा। सूंडपानी के निकट पहुंचने पर सूंड से निकली हवा से पानीमें हलचल हुई और चद्रंमा ला प्रतिबिम्ब कई भागों में बंटगया और विकॄत हो गया। यह देखते ही चतुर्दंत के होशउड गए। वह हडबडाकर कई कदम पीछे हट गया। लंबकर्णतो इसी बात की ताक में था। वह चीखा “देखा,आपको देखते ही चंद्रदेव कितने रुष्ट हो गए! वह क्रोध सेकांप रहे हैं और गुस्से से फट रहे हैं। आप अपनी खैर चाहते हैंतो अपने झुंड के समेत यहां से शीघ्रातिशीघ्र प्रस्थानकरें वर्ना चंद्रदेव पता नहीं क्या श्राप देदें।”चतुर्दंत तुरंत अपने झुंड के पास लौट गया और सबकोसलाह दी कि उनका यहां से तुरंत प्रस्थान करना हीउचित होगा। अपने सरदार के आदेश को मानकरहाथियों का झुंड लौट गया। खरगोशों में खुशी कीलहर दौड गई। हाथियों के जाने के कुछ ही दिनपश्चात आकाश में बादल आए, वर्षा हुई और सारा जलसंकट समाप्त हो गया। हाथियों को फिर कभी उसओर आने की जरूरत ही नहीं पडी।सीखः चतुराई से शारीरिक रुप से बलशाली शत्रु कोभी मात दी जा सकती हैं।
Tuesday, September 29, 2015
हाथीयों का उपहार
राजा कॄष्णदेव राय समय-समय पर् तेनाली राम को बहुमूल्य उपहार देते रहते थे। एक बार प्रसन्न होकर राजा ने तेनाली राम को पॉच हाथी उपहार में दिए। ऐसे उपहार को पाकर तेनाली राम बहुत परेशान हो गया। निर्धन होने के कारण तेनाली राम पॉच-पॉचहाथियों के खर्चों का भार नहीं उठा सकता था क्योंकि उन्हें खिलाने के लिए बहुत से अनाज कीआवश्यक्ता होती थी।तेनाली राम अपने परिवार का ही ठीक-ठाक तरिके से पालन-पोषण नहीं कर पाता था। अतः पॉच हाथियों का अतिरिक्त व्यय उसके लिए अत्यधिक कठिन था, फिर भी अधिक विरोध किए बिना तेनाली राम हाथियों को शाही उपहार के रुप में स्वीकार कर घर ले आया। घर पर तेनाली राम की पत्नी सदैव शिकायत करती रहती, “हम स्वंय तो ठीक से रह नहीं पाते फिर इन हाथियों के लिए कहॉ रहने की व्यवस्था करें? हम इनके लिए कोई नौकर भी नहींरख सकते। हम अपने लिए तो जैसे-तैसे भोजन की व्यवस्था कर पाते हैं, परन्तु इनके लिए अब कहॉ से भोजन लाए?यदि राजा हमें पॉच हाथियों के स्थान पर पॉच गायें ही दे देते तो कम-से-कम उनके दूध से हमारा भरण- पोषण तो होता।”तेनाली राम जानता था कि उसकी पत्नी सत्य कह रही हैं। कुछ देर सोचने के बाद उसने हाथियों से पीछा छुडाने की योजना बना ली। वह उठा और बोला, “मैं जल्दी ही वापस आ जाऊँगा। पहले इन हाथियों को देवी काली को समर्पित कर आऊँ ।”तेनाली राम हाथियों को लकेर काली मंदिर गया और वहॉ उसने उनके माथे पर तिलक लगाया। इसके बाद उसने हाथियों को नगर में घूमने के लिए छोड दिया।कुछ दयावान लोग हाथियों को खाना खिला देते, परन्तु अधिकतर समय हाथी भूखे ही रहते। शीघ्र ही वे निर्बल हो गए। किसी ने हाथियों की दुर्दशा के विषय में राजा को सूचना दी। राजा को सूचना दी।राजा हाथियों के प्रति तेनाली राम के इस व्यवहार से अप्रसन्न हो गए। उन्होंने तेनाली राम को दरबार में बुलाया और पूछा, “तेनाली, तुमने हाथियों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार क्यों किया?”तेनाली राम बोला, “महाराज, आपने मुझे पॉच हाथी उपहार में दिए। उन्हें अस्वीकार करने से आपका अपमान होता। यह सोचकर मैंने उन हाथियों को स्वीकार कर लिया। परन्तु यह उपहार मेरे ऊपर एक बोझ बन गया,क्योंकि मैं एक निर्धन व्यक्ति हूँ मैं पॉच हाथियो की देखभाल का अतिरिक्त भार नहीं उठा सकता था।अतः मैंने उन्हें देवी काली को समर्पित कर दिया। अब आप् ही बताइये, यदि आप पॉच हाथियों के स्थान पर मुझे पॉच गायें उपहार में दे देते, तो वह मेरे परिवार केलिये ज्यादा उपयोगी साबित होतीं।” राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ, वह बोले,“यदि मैं तुम्हे गायें देता, तब तुम उनके साथ भी तो ऐसा दुर्व्यवहार करते?”“नहीं महाराज! गाये तो पवित्र जानवर हैं। और फिर गाय का दूध मेरे बच्चों के पालन-पोषण के काम आता।उल्टे इसके लिए वे आपको धन्यवाद देते और आपकी दया से मैं गायों के व्यय का भार तो उठा ही सकता हूँ।” राजा ने तुरन्त आदेश दिया कि तेनाली से हाथियों को वापस ले लिया जाए तथा उनके स्थान पर उसे पॉच गायें उपहार में दी जाएँ।
नकल करना बुरा है
एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज रहता था।पहाड़ की तराई में बरगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घोंसला बनाकर रहता था। वह बड़ा चालाक और धूर्त था। उसकी कोशिश सदा यही रहती थी कि बिना मेहनत किए खाने को मिल जाए। पेड़ के आसपास खोह में खरगोश रहते थे। जब भी खरगोश बाहर आते तो बाजऊंची उड़ान भरते और एकाध खरगोश को उठाकर ले जाते।एक दिन कौए ने सोचा, ‘वैसे तो ये चालाक खरगोश मेरे हाथ आएंगे नहीं, अगर इनका नर्म मांस खाना है तो मुझे भी बाज की तरह करना होगा। एकाएक झपट्टामारकर पकड़ लूंगा।’दूसरे दिन कौए ने भी एक खरगोश को दबोचने की बात सोचकर ऊंची उड़ान भरी। फिर उसने खरगोश को पकड़ने के लिए बाज की तरह जोर से झपट्टा मारा। अब भला कौआ बाज का क्या मुकाबला करता।
खरगोश ने उसे देख लिया और झट वहां से भागकर चट्टान के पीछे छिप गया। कौआ अपनी हीं झोंक में उस चट्टान से जा टकराया। नतीजा, उसकी चोंच और गरदन टूट गईं और उसने वहीं तड़प कर दम तोड़ दिया।
शिक्षा—नकल करने के लिए भी अकल चाहिए।
बडे नाम का चमत्कार
एक समय की बात है एक वन में हाथियों का एक झुंडरहता था। उस झुंड का सरदार चतुर्दंत नामक एक विशाल, पराक्रमी, गंभीर व समझदार हाथी था। सब उसी की छत्र-छाया में शुख से रहते थे। वह सबकी समस्याएं सुनता। उनका हल निकालता, छोटे-बडे सबका बराबर ख्याल रखता था। एक बार उस क्षेत्र में भयंकर सूखा पडा। वर्षों पानी नहीं बरसा। सारे ताल-तलैया सूखने लगे। पेड-पौधे कुम्हला गए धरती फट गई, चारों और हाहाकार मच गई। हर प्राणी बूंद-बूंद के लिए तरसता गया। हाथियों ने अपने सरदार से कहा “सरदार, कोई उपाय सोचिए। हम सब प्यासे मर रहे हैं। हमारे बच्चे तडप रहे हैं।” चतुर्दंत पहले ही सारी समस्या जानता था। सबके दुख समझता था पर उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या उपाय करे। सोचते-सोचते उसे बचपन की एक बात याद आई और चतुर्दंत ने कहा “मुझे ऐसा याद आता हैं कि मेरे दादाजी कहते थे, यहां से पूर्व दिशा में एक ताल हैं, जो भूमिगत जल से जुडे होने के कारण कभी नहीं सूखता। हमें वहां चलना चाहिए।” सभी को आशा की किरण नजर आई। हाथियों का झुंड चतुर्दंत द्वारा बताई गई दिशा की ओर चल पडा। बिना पानी के दिन की गर्मी में सफरकरना कठिन था, अतः हाथी रात को सफर करते। पांच रात्रि के बाद वे उस अनोखे ताल तक पहुंच गए। सचमुच ताल पानी से भरा था सारे हातियों ने खूब पानी पिया जी भरकर ताल में नहाए व डुबकियांलगाईं।उसी क्षेत्र में खरगोशों की घनी आबादी थी। उनकीशामत आ गई। सैकडों खरगोश हाथियों के पैरों-तलेकुचले गए। उनके बिल रौंदे गए। उनमें हाहाकार मच गया।बचे-कुचे खरगोशों ने एक आपातकालीन सभा की। एकखरगोश बोला “हमें यहां से भागना चाहिए।”एक तेज स्वभाव वाला खरगोश भागने के हक में नहींथा। उसने कहा “हमें अक्ल से काम लेना चाहिए। हाथीअंधविश्वासी होते हैं। हम उन्हें कहेंगे कि हम चंद्रवंशीहैं। तुम्हारे द्वारा किए खरगोश संहार से हमारे देवचंद्रमा रुष्ट हैं। यदि तुम यहां से नहीं गए तो चंद्रदेव तुम्हेंविनाश का श्राप देंगे।”एक अन्य खरगोश ने उसका समर्थन किया “चतुर ठीककहता हैं। उसकी बात हमें माननी चाहिए। लंबकर्णखरगोश को हम अपना दूत बनाकर चतुर्दंत के पास भेंजेगे।”इस प्रस्ताव पर सब सहमत हो गए। लंबकर्ण एक बहुत चतुरखरगोश था। सारे खरगोश समाज में उसकी चतुराई कीधाक थी। बातें बनाना भी उसे खूब आता था। बात सेबात निकालते जाने में उसका जवाब नहीं था। जबखरगोशों ने उसे दूत बनकर जाने के लिए कहा तो वह तुरंततैयार हो गया। खरगोशों पर आए संकट को दूर करके उसेप्रसन्नता ही होगी। लंबकर्ण खरगोश चतुर्दंत के पासपहुंचा और दूर से ही एक चट्टान पर चढकर बोला“गजनायक चतुर्दंत, मैं लंबकर्ण चन्द्रमा का दूत उनका संदेशलेकर आया हूं। चन्द्रमा हमारे स्वामी हैं।”चतुर्दंत ने पूछा ” भई,क्या संदेश लाए हो तुम ?”लंबकर्ण बोला “तुमने खरगोश समाज को बहुत हानिपहुंचाई हैं। चन्द्रदेव तुमसे बहुत रुष्ट हैं। इससे पहले कि वहतुम्हें श्राप देदें, तुम यहां से अपना झुंड लेकर चले जाओ।”चतुर्दंत को विश्वास न हुआ। उसने कहा “चंद्रदेव कहां हैं?मैं खुद उनके दर्शन करना चाहता हूं।”लंबकर्ण बोला “उचित हैं। चंद्रदेव असंख्य मॄत खरगोशोंको श्रद्धांजलि देने स्वयं ताल में पधारकर बैठे हैं, आईए,उनसे साक्षात्कार कीजिए और स्वयं देख लीजिए किवे कितने रुष्ट हैं।” चालाक लंबकर्ण चतुर्दंत को रात मेंताल पर ले आया। उस रात पूर्णमासी थी। ताल में पूर्णचंद्रमा का बिम्ब ऐसे पड रहा था जैसे शीशे मेंप्रतिबिम्ब दिखाई पडता हैं। चतुर्दंत घबरा गयाचालाक खरगोश हाथी की घबराहट ताड गया औरविश्वास के साथ बोला “गजनायक, जरा नजदीक सेचंद्रदेव का साक्षात्कार करें तो आपको पता लगेगाकि आपके झुंड के इधर आने से हम खरगोशों पर क्याबीती हैं। अपने भक्तों का दुख देखकर हमारे चंद्रदेवजी केदिल पर क्या गुजर रही है|”लंबकर्ण की बातों का गजराज पर जादू-सा असर हुआ।चतुर्दंत डरते-डरते पानी के निकट गया और सूंड चद्रंमा केप्रतिबिम्ब के निकट ले जाकर जांच करने लगा। सूंडपानी के निकट पहुंचने पर सूंड से निकली हवा से पानीमें हलचल हुई और चद्रंमा ला प्रतिबिम्ब कई भागों में बंटगया और विकॄत हो गया। यह देखते ही चतुर्दंत के होशउड गए। वह हडबडाकर कई कदम पीछे हट गया। लंबकर्णतो इसी बात की ताक में था। वह चीखा “देखा,आपको देखते ही चंद्रदेव कितने रुष्ट हो गए! वह क्रोध सेकांप रहे हैं और गुस्से से फट रहे हैं। आप अपनी खैर चाहते हैंतो अपने झुंड के समेत यहां से शीघ्रातिशीघ्र प्रस्थानकरें वर्ना चंद्रदेव पता नहीं क्या श्राप देदें।”चतुर्दंत तुरंत अपने झुंड के पास लौट गया और सबकोसलाह दी कि उनका यहां से तुरंत प्रस्थान करना हीउचित होगा। अपने सरदार के आदेश को मानकरहाथियों का झुंड लौट गया। खरगोशों में खुशी कीलहर दौड गई। हाथियों के जाने के कुछ ही दिनपश्चात आकाश में बादल आए, वर्षा हुई और सारा जलसंकट समाप्त हो गया। हाथियों को फिर कभी उसओर आने की जरूरत ही नहीं पडी।सीखः चतुराई से शारीरिक रुप से बलशाली शत्रु कोभी मात दी जा सकती हैं।
मांस का मूल्य
मगध के सम्राट् श्रेणिक ने एक बार अपनी राज्य-सभा में पूछा कि- "देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है? " मंत्रि-परिषद् तथा अन्य सदस्य सोचमें पड़ गये। चावल, गेहूं, आदि पदार्थ तो बहुत श्रम बाद मिलते हैं और वह भी तब, जबकि प्रकृति का प्रकोप न हो। ऐसी हालत में अन्न तो सस्ता हो नहीं सकता।
शिकार का शौक पालने वाले एक अधिकारी ने सोचा कि मांस ही ऐसी चीज है, जिसे बिना कुछ खर्च किये प्राप्त किया जा सकता है। उसने मुस्कराते हुए कहा- "राजन्! सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ तो मांस है। इसे पाने में पैसा नहीं लगता और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है।" सबने इसका समर्थन किया।
लेकिन मगध का प्रधान मंत्री अभय कुमार चुप रहा। श्रेणिक ने उससे कहा, "तुम चुप क्यों हो? बोलो, तुम्हारा इस बारेमें क्या मत है?" प्रधान मंत्री ने कहा, "यह कथन कि मांस सबसे सस्ता है, एकदम गलत है। मैं अपने विचार आपके समक्ष कल रखूंगा।" रात होने पर प्रधानमंत्री सीधे उस सामन्त के महल पर पहुंचे, जिसने सबसे पहले अपना प्रस्ताव रखा था। अभय ने द्वार खटखटाया। सामन्त ने द्वार खोला। इतनी रात गये प्रधान मंत्री को देखकर वह घबरा गया। उनका स्वागत करते हुए उसने आने का कारण पूछा। प्रधान मंत्री ने कहा - "संध्या को महाराज श्रेणिक बीमार हो गए हैं। उनकी हालत खराब है। राजवैद्य ने उपाय बताया है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाय तो राजा के प्राण बच सकते हैं। आप महाराज के विश्ववास-पात्र सामन्त हैं। इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय का दो तोला मांस लेने आया हूं। इसके लिए आप जो भी मूल्य लेना चाहें, ले सकते हैं। कहें तो लाख स्वर्ण मुद्राएं दे सकता हूं।" यह सुनते ही सामान्त के चेहरे का रंग फीका पड़ गया। वह सोचने लगा कि जब जीवन ही नहीं रहेगा, तब लाख स्वर्ण मुद्राएं भी किस काम आएगी! उसने प्रधान मंत्री के पैर पकड़ कर माफी चाही और अपनी तिजौरी से एक लाख स्वर्ण मुद्राएं देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें। मुद्राएं लेकर प्रधानमंत्री बारी-बारी से सभी सामन्तों के द्वार पर पहुंचे और सबसे राजा के लिए हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ। सबने अपने बचाव के लिए प्रधानमंत्री को एक लाख, दो लाख और किसी ने पांच लाख स्वर्ण मुद्राएं दे दी। इस प्रकार एक करोड़ से ऊपर स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधान मंत्री सवेरा होने से पहले अपने महल पहुंच गए और समय पर राजसभा में प्रधान मंत्री ने राजा के समक्ष एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं रख दीं। श्रेणिक ने पूछा, "ये मुद्राएं किसलिए हैं?" प्रधानमंत्री ने सारा हाल कह सुनाया और बोले - " दो तोला मांस खरीदने के लिए इतनी धनराशी इक्कट्ठी हो गई किन्तु फिर भी दो तोला मांस नहीं मिला। अपनी जान बचाने के लिए सामन्तों ने ये मुद्राएं दी हैं। अब आप सोच सकते हैं कि मांस कितना सस्ता है?" जीवन का मूल्य अनन्त है। हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी होती है, उसी तरह सभी जीवों को अपनी जान प्यारी होती है ।
जियो और जीने दो प्राणी मात्र की रक्षा हमारा धर्म है..!! . शाकाहार अपनाओ…
बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, 1856- १ अगस्त १९२०) "स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है,और मै इसे लेकर रहूँगा।" बाल गंगाधर तिलक (२३ जुलाई, 1856- १ अगस्त १९२०) भारत के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे। इन्होंने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वराज की माँग उठाई। इनका कथन "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा" बहुत प्रसिद्ध हुआ। इन्हें आदर से "लोकमान्य" कहा जाता था। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है। तिलक ने अंग्रेजी सरकार की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। इन्होंने माँग की कि ब्रिटिश सरकार तुरन्त भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे। केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया। ‘क्या ये सरकार पागल हो गई है?’ और 'बेशर्म सरकार' जैसे उनके लेखों ने आम भारतीयों के मन में रोष की लहर दौड़ा दी। दो वर्षों में ही ‘केसरी’ देश का सबसे ज्यादा बिकने वाला भाषाई समाचार-पत्र बन गया था। लंदन के ‘ग्लोब’ और ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ समाचार पत्रों ने तिलक पर लोगों को हत्या के लिए भड़काने का आरोप लगाया। इस आरोप में तिलक को 18 महीने की कैद हो गई। नाराज अँग्रेजों ने तिलक को भारतीय अशांति का दूत घोषित कर दिया। इस बीच तिलक ने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की सदस्यता ले ली थी, लेकिन स्वराज्य की माँग को लेकर काँग्रेस के उदारवादियों का रुख उन्हें पसंद नहीं आया और सन 1907 के काँग्रेस के सूरत अधिवेशन के दौरान काँग्रेस गरम दल और नरम दल में बँट गई। गरम दल का नेतृत्व लाला लाजपतराय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल कर रहे थे। उन्होंने गणेश उत्सव, शिवाजी उत्सव आदि को व्यापक रूप से मनाना प्रारंभ किया। उनका मानना था कि इस तरह के सार्वजनिक मेल-मिलाप के कार्यक्रम लोगों में सामूहिकता की भावना का विकास करते हैं। वह अपने इस उद्देश्य में काफी हद तक सफल भी हुए। तिलक ने शराबबंदी के विचार का पुरजोर समर्थन किया। वो पहले काँग्रेसी नेता थे, जिन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा स्वीकार करने की माँग की थी। 1 अगस्त, 1920 को इस जननायक ने मुंबई में अपनी अंतिम साँस ली।तिलक की मृत्यु पर महात्मा गाँधी ने कहा - ‘हमने आधुनिक भारत का निर्माता खो दिया है।’
धैर्य और प्रेम
बहुत समय पहले की बात है, एक वृद्ध सन्यासी हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहता था। वह बड़ा ज्ञानी था और उसकी बुद्धिमत्ता की ख्याति दूर -दूरतक फैली थी। एक दिन एक औरत उसके पास पहुंचीऔर अपना दुखड़ा रोने लगी बाबा, मेरा पति मुझसे बहुत प्रेम करता था , लेकिन वह जबसे युद्ध से लौटा है ठीक से बात तक नहीं करता। युद्ध लोगों के साथ ऐसा ही करता है। सन्यासी बोला। लोग कहते हैं कि आपकी दी हुई जड़ी-बूटी इंसान में फिर से प्रेम उत्पन्न कर सकती है कृपया आप मुझे वो जड़ी-बूटी दे दें। ” , महिला ने विनती की।
सन्यासी ने कुछ सोचा और फिर बोला देवी मैं तुम्हे वह जड़ी-बूटी ज़रूर दे देता लेकिन उसे बनाने के लिए एक ऐसी चीज चाहिए जो मेरे पास नहीं है आपको क्या चाहिए मुझे बताइए मैं लेकर आउंगी महिला बोली। "मुझे बाघ की मूंछ का एक बाल चाहिए।" सन्यासी बोला। अगले ही दिन महिला बाघ की तलाश में जंगल में निकल पड़ी , बहुत खोजने के बाद उसे नदी के किनारे एक बाघ दिखा बाघ उसे देखते ही दहाड़ा महिला सहम गयी और तेजी से वापस चली गयी। अगले कुछ दिनों तक यही हुआ महिला हिम्मत कर के उस बाघ के पास पहुँचती और डर कर वापस चली जाती। महीना बीतते-बीतते बाघ को महिला की मौजूदगी की आदत पड़ गयी,और अब वह उसे देख कर सामान्य ही रहता। अब तो महिला बाघ के लिए मांस भी लाने लगी , और बाघ बड़े चाव से उसे खाता। उनकी दोस्ती बढ़ने लगी और अब महिला बाघ को थपथपाने भी लगी और देखते देखते एक दिन वो भी आ गया जब उसने हिम्मत दिखाते हुए बाघ की मूंछ का एक बाल भी निकाल लिया|फिर क्या थावह बिना देरी किये सन्यासी के पास पहुंची और बोली ” मैं बाल ले आई बाबा। बहुत अच्छे। और ऐसा कहते हुए सन्यासी ने बाल को जलती हुई आग में फ़ेंक दिया अरे ये क्या बाबा आप नहीं जानते इस बाल को लाने के लिए मैंने कितने प्रयत्न किये और आपने इसे जला दिया ……अब मेरी जड़ी-बूटी कैसे बनेगी ?” महिला घबराते हुए बोली। अब तुम्हे किसी जड़ी-बूटी की ज़रुरत नहीं है। सन्यासी बोला।” जरा सोचो तुमने बाघ को किस तरह अपने वश में किया…जब एक हिंसक पशु को धैर्य और प्रेम से जीता जा सकता है तो क्याएक इंसान को नहीं ?
Saturday, September 26, 2015
दशरथ मांझी : एक अद्भुत चरित्र
मैंने बहुत से महापुरुषों को पढ़ा है किन्तु यह मेरा दुर्भाग्य ही था की मैंने आज तक दशरथ मांझी जैसे देव पुरुष को कभी नहीं पढ़ा। दशरथ मांझी ने अपने जीवन के दो दशक हथौड़ी और छेनी से पहाड़ काटकर रास्ता बनाने में व्यतीत कर दिए। उनका जीवन संघर्ष, त्याग, प्रेम और परोपकार का प्रतीक है।
यह सच्ची कहानी है दशरथ मांझी नाम के एक गरीब आदमी की।
दशरथ मांझी का जन्म 1934 ई. में बिहार के गेलहर गॉंव में एक बहुत गरीब परिवार में हुआ। आधुनिक काल में प्रचलित एक घृणित परंपरा अनुसार वे बिहार के आदिवासी जनजाति में के बहुत निम्न स्तरीय मुसाहर जनजाति से थे। उनकी पत्नी का नाम फाल्गुनी देवी था। दशरथ मांझी के लिए पीने का पानी ले जाते फाल्गुनी देवी दुर्घटना की शिकार हुई। उन्हें तत्काल डॉक्टरी सहायता नहीं मिल पाई। शहर उनके गॉंव से लगभग 70 किलोमीटर दूर था किन्तु वहॉं तक तुरंत पहुँचना संभव नहीं था। दुर्भाग्य से समुचित उपचार के अभाव में फाल्गुनी देवी की मौत हो गई।
ऐसा प्रसंग किसी और पर न गुजरे, इस विचार ने दशरथमांझी को वो प्रेरणा दी जिसकी मिसाल आम आादमी के तो बस की बात नही थी। इससे यह भी एक बार फिर सिद्ध हुआ की किसी व्यक्ति को कही भी, कभी भी, कुछ भी प्रेरणा मिल सकती है।
समीप के शहर की 70 किलोमीटर की दूरी कैसे पाटी जा सकती है इस दिशा में उनका विचार चक्र चलने लगा। उनके ध्यान में आया कि, शहर से गॉंव को अलग करने वाला पर्वत हटाया गया तो यह दूरी बहुत कम हो जाएगी। पर्वत तोडने के बाद शहर से गॉंव तक की सत्तर किलोमीटर दूरी केवल सात किलोमीटर रह जाती। उन्होंने यह काम शुरू करने का दृढ निश्चय किया, लेकिन काम आसान नहीं था। इसके लिए उन्हें उनका रोजी-रोटी देने का दैनंदिन काम छोडना पड़ता। उन्होंने अपनी बकरियॉं बेचकर छैनी , हथोड़ा और फावडा खरीदा। अपनी झोपडी काम के स्थान के पास बनाई. इससे अब वे दिन-रात काम कर सकते थे। इस काम से उनके परिवार को दुविधाओं का सामना करना पड़ा, कई बार दशरथ को खाली पेट ही काम करना पड़ा।
उनके आस-पास से लोगों का आना-जाना शुरू था। आस पास के गांवों में इस काम की चर्चा हो रही थी। सब लोगों ने दशरथ को पागल मान लिया था। उनकी हँसी उड़ाई जा रही थी। उन्हें गॉंव के लोगों की तीव्र आलोचना सहनी पडती थी। लेकिन वे कभी भी अपने निश्चय से नहीं डिगे। जैसे-जैसे काम में प्रगति होती उनका निश्चय और भी पक्का होता जाता।
लगातार बाईस वर्ष दिन-रात किए परिश्रम के कारण 1960 में शुरु किया यह असंभव लगने वाला काम 1982 में पूरा हुआ। उनके अकेले के परिश्रम ने अनिश्चित लगने वाला कार्य , पर्वत तोडकर 360 फुट लंबा, 25 फुट ऊँचा और 30 फुट चौडा रास्ता बना डाला। इससे गया जिले में आटरी और वझीरगंज इन दो गॉंवों में का अंतर दस किलोमीटर से भी कम रह गया। उनकी पत्नी फाल्गुनी देवी – जिसकी प्रेरणा से उन्होंने यह असंभव लगने वाला काम पूरा किया, उस समय उनके पास नहीं थी, किन्तु गॉंव के लोगों से जैसे बन पड़ा, उन्होंने मिठाई, फल दशरथजी को लाकर दिए और उनके साथ उनकी सफलता की खुशी मनाई। आज तो उनके क्षेत्र जनता भी चॉंव से इस पर्वत को हिलाने वाले देवदूत की कहानी सुनने लगे है। गॉंव वालों ने दशरथ जी को ‘साधुजी’ पदवी दी है। दशरथ जी कहते थे , ‘‘मेरे काम की प्रथम प्रेरणा है मेरा पत्नी पर का प्रेम. उस प्रेम ने ही पर्वततोडकर रास्ता बनाने की ज्योत मेरे हृदय में जलाई। करीब के हजारों लोग अपनी रोजाना की आवश्यकताओं के लिए बिना कष्ट किए समीप के शहर जा सकेगे, यह मेरी आँखो के सामने आने वाला दृश्य मुझे दैनिक कार्य के लिए प्रेरणा देता था। इस कारण ही मैं चिंता और भय को मात दे सका.’’
आज दशरथ मांझी इस संसार में नही हैं किन्तु उनके अथक परिश्रम ने उन्हें देवता तो बना ही दिया है।
Wednesday, September 23, 2015
सप्लीमेंट्स के नुकसान
सप्लीमेंट्स और प्रोटीन पाउडर भले ही आपकी मांसपेशियों के निर्माण में प्रभावी हों, लेकिन इसके बहुत दुष्प्रभाव हैं। जानिए कैसे !
अलग अलग प्रकार के सप्लीमेंट्स::-
वेट गेनर सप्लीमेंट्स
वेट गेनर सप्लीमेंट्स वजन बढ़ाने वाले सप्लीमेंट्स होते हैं। ये पाउडर के रूप में बाजार में मिलते हैं। इनमें प्रोटीन का स्तर काफी ऊंचा होता है और कई बार ये हाई प्रोटीन नुकसानदायक या जानलेवा भी सिद्ध हो सकते हैं। अगर आप वर्कआउट के लिए जिम जाते हैं और वहां अपने ट्रेनर से अपना वजन बढ़ाने के बारे में पूछते हैं तो अधिकतर ट्रेनर आपको प्रोटीन सप्लीमेंट लेने की राय दे देते हैं। और आप भी जल्दी-जल्दी अपना वजन बढ़ाने के लालच में बिना इसके साइड इफेक्ट जाने इनका इस्तेमाल शुरू कर देते हैं। लेकिन बिना किसी एक्सपर्ट की सलाह लिए इस तरह के सप्लीमेंट लेना आपके लिए घातक है। डाइट से हमारे शरीर में जाने वाला प्रोटीन धीरे-धीरे काम करता है, जबकि इन प्रोटीन सप्लीमेंट्स से शरीर में जो आर्टिफिशियल प्रोटीन जाता है वो अपना असर तुरंत दिखाता है। हमारा शरीर इतना प्रोटीन सहन नहीं कर पाता और पाचन संबंधी परेशानियों का हमें सामना करना पड़ता है। सप्लीमेंट से मिलने वाला प्रोटीन हमारे शरीर में ज्यादा मात्र में पहुंचने के कारण फैट में बदल जाता है और कोलेस्ट्रॉल के रूप में हमारे शरीर में जमा हो जाता है, जिससे स्ट्रेस लेवल बढ़ता है। और दिल की बीमारियां हो सकती हैं।
वेट लूज सप्लीमेंट्स
आजकल मोटापा एक आम समस्या बन चुकी है। युवा इसके लिए वेट लूज इंजेक्शंस और कैप्सूल्स इस्तेमाल करते हैं। वेट लूज करने वाली ड्रग्स में क्रोमियम का इस्तेमाल किया जाता है, जो मधुमेह रोगियों को दिया जाता है। आमतौर पर 20 मिनट तक वर्कआउट करने के बाद शरीर की वसा जलनी शुरू होती है, क्योंकि इससे पहले काबरेहाइड्रेट बर्न होता है। लेकिन ये ड्रग्स आठ से दस मिनट के अंदर ही वसा को जलाना शुरू कर देते हैं। इसके अलावा ये ड्रग्स शरीर में पानी की कमी कर देते हैं, जिनसे भी वजन कम होता है। भले ही ये दवाइयां अपना असर जल्दी दिखाती हों, लेकिन इनके नुकसान इससे कहीं ज्यादा हैं। शरीर में पानी की कमी होने के कारण डीहाइड्रेशन हो जाता है, जिससे मौत भी हो सकती है।
कई और नुक्सान::-
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं
कुछ मांसपेशियों का बढ़ाने वाले उत्पादों का प्रयोग गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं का कारण बन सकता। कई सारे बॉडी बिल्डिंग सप्लीमेंट्स में पाया जाने वाला क्रेटीन, पेट की खराबी और दस्त होने का कारण बन सकता है। साथ ही यदि आप लैक्टोज के प्रति सहज नहीं हैं तो आपको सूजन हो सकती।
किडनी को हानि
क्रेटीन सबसे लोकप्रिय मांसपेशियों के सप्लीमेंट में से एक है। मांसपेशियों की वृद्धि में क्रेटीन का अधिक प्रभाव होता है तथा इसकी कीमत भी अपेक्षाकृत कम है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि क्रेटीन के प्रयोगों से कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं। क्रेटीन, लंबे समय तक चलने वाली किडनी संबंधित बीमारियों, यहां तक की किडनी फेल्योर का कारणी बन सकता है। इसलिए कोई भी सप्लीमेंट्स लेने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
अनिद्रा
कई मांसपेशियां बढ़ाने वालो उत्पादों में क्रेटीन और कैफीन होते हैं जो आपके वर्कआउट को अधिक तीव्र कर देते हैं। हालांकि कैफीन युक्त उत्पादों का नियमित रूप से प्रयोग परेशानी पैदा कर सकता है। इनके कारण थकान और अनिद्रा की समस्या हो सकती है।
तोता रट
एक बार एक साधु ने अपनी कुटिया में कुछ तोते पाल रखे थे। सभी तोते अपनी सुरक्षा के लिए एक गीत गाते थे। गीत कुछ इस तरह था कि 'शिकारी आएगा जाल बिछाएगा पर हम नहीं जाएंगे' एक दिन साधु भिक्षा मांगने के लिए पास के एक गांव में गए।इसी बीच एक बहेलिया ने देखा एक पेड़ पर तोते बैठे हैं उसे उन पक्षियों को देख उसे लालच हुआ उसने उन सभी तोते को पकड़ने की योजना बनाने लगा। तभी तोते एक साथ गाने लगे शिकारी आएगा जाल बिछाएगा पर हम नहीं जाएंगेबहेलिया ने जब यह सुना तो आश्चर्यचकित रह गया
उसने इतने समझदार तोते कहीं देखें ही नहीं थे उसने सोचा इन्हे पकड़ना असंभव हैं ये तो प्रशिक्षित तोते लगते हैं। बहेलिया को नींद आ रही थी उसने उसी पेड़ के नीचे अपनी जाल में कुछ अमरूद के टुकड़े डाल कर सो गया, सोचा कि संभवतः कोई लालची और बुद्धू तोता फंस जाएं।कुछ समय बाद जब वह सोकर उठा तो देखा कि सारे तोते एक साथ गा रहे थे शिकारी आएगा जाल बिछाएगा पर हम नहीं जाएंगे पर वह यह गीत जाल के अंदर गा रहे थे। शिकारी उन सब बुद्धू तोते की हाल देख हंस पड़ा और सब को पकड़ कर ले गया।
किसी भी ज्ञान को रटने की वजाय उसे समझने पर बल देना चाहिए। क्यों कि रटा हुआ ज्ञान विपत्ति पढ़ने पर काम नहीं आता
सौ ऊंट
किसी शहर में, एक आदमी प्राइवेट कंपनी में जॉब करता था . वो अपनी ज़िन्दगी से खुश नहीं था , हर समय वो किसी न किसी समस्या से परेशान रहता था .
एक बार शहर से कुछ दूरी पर एक महात्मा का काफिला रुका . शहर में चारों और उन्ही की चर्चा थी.
बहुत से लोग अपनी समस्याएं लेकर उनके पास पहुँचने लगे ,
उस आदमी ने भी महात्मा के दर्शन करने का निश्चय किया .
छुट्टी के दिन सुबह -सुबह ही उनके काफिले तक पहुंचा . बहुत इंतज़ार के बाद उसका का नंबर आया .
वह बाबा से बोला ,” बाबा , मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ , हर समय समस्याएं मुझे घेरी रहती हैं , कभी ऑफिस की टेंशन रहती है , तो कभी घर पर अनबन हो जाती है , और कभी अपने सेहत को लेकर परेशान रहता हूँ ….
बाबा कोई ऐसा उपाय बताइये कि मेरे जीवन से सभी समस्याएं ख़त्म हो जाएं और मैं चैन से जी सकूँ ?
बाबा मुस्कुराये और बोले , “ पुत्र , आज बहुत देर हो गयी है मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर कल सुबह दूंगा … लेकिन क्या तुम मेरा एक छोटा सा काम करोगे …?”
“हमारे काफिले में सौ ऊंट हैं ,
मैं चाहता हूँ कि आज रात तुम इनका खयाल रखो …
जब सौ के सौ ऊंट बैठ जाएं तो तुम भी सो जाना …”,
ऐसा कहते हुए महात्मा अपने तम्बू में चले गए ..
अगली सुबह महात्मा उस आदमी से मिले और पुछा , “ कहो बेटा , नींद अच्छी आई .”
वो दुखी होते हुए बोला :
“कहाँ बाबा , मैं तो एक पल भी नहीं सो पाया. मैंने बहुत कोशिश की पर मैं सभी ऊंटों को नहीं बैठा पाया , कोई न कोई ऊंट खड़ा हो ही जाता …!!!
बाबा बोले , “ बेटा , कल रात तुमने अनुभव किया कि चाहे कितनी भी कोशिश कर लो सारे ऊंट एक साथ नहीं बैठ सकते …
तुम एक को बैठाओगे तो कहीं और कोई दूसरा खड़ा हो जाएगा.
इसी तरह तुम एक समस्या का समाधान करोगे तो किसी कारणवश दूसरी खड़ी हो जाएगी ..
पुत्र जब तक जीवन है ये समस्याएं तो बनी ही रहती हैं … कभी कम तो कभी ज्यादा ….”
“तो हमें क्या करना चाहिए ?” , आदमी ने जिज्ञासावश पुछा .
“इन समस्याओं के बावजूद जीवन का आनंद लेना सीखो …
कल रात क्या हुआ ?
1) कई ऊंट रात होते -होते खुद ही बैठ गए ,
2) कई तुमने अपने प्रयास से बैठा दिए ,
3) बहुत से ऊंट तुम्हारे प्रयास के बाद भी नहीं बैठे … और बाद में तुमने पाया कि उनमे से कुछ खुद ही बैठ गए ….
कुछ समझे ….??
समस्याएं भी ऐसी ही होती हैं..
1) कुछ तो अपने आप ही ख़त्म हो जाती हैं ,
2) कुछ को तुम अपने प्रयास से हल कर लेते हो …
3) कुछ तुम्हारे बहुत कोशिश करने पर भी हल नहीं होतीं ,
ऐसी समस्याओं को समय पर छोड़ दो … उचित समय पर वे खुद ही ख़त्म हो जाती हैं.!!
जीवन है, तो कुछ समस्याएं रहेंगी ही रहेंगी …. पर इसका ये मतलब नहीं की तुम दिन रात उन्ही के बारे में सोचते रहो …
समस्याओं को एक तरफ रखो
और जीवन का आनंद लो…
चैन की नींद सो …
जब उनका समय आएगा वो खुद ही हल हो जाएँगी"...
बिंदास मुस्कुराओ क्या ग़म हे,..
ज़िन्दगी में टेंशन किसको कम हे..
अच्छा या बुरा तो केवल भ्रम हे..
जिन्दगी का नाम ही
कभी ख़ुशी कभी ग़म है ..!!
जीवन की सार्थकता
बाबा अनंतराम हर समय लोगों की सेवा में जुटे रहते थे। उनके लाख मना करने पर भी लोग उन्हें खूब चढ़ावा चढ़ाया करते थे। बाबा उसे गरीबों में बांट देते थे।
एक दिन एक सेठ ढेर सारे हीरे-मोती उनके चरणों में रखते हुए बोला- बाबा, मेरी ओर से यह भेंट स्वीकार करें। बाबा ने हीरे-मोतियों की ओर देखा तक नहीं और श्रद्धालुओं की समस्या का समाधान करते रहे। सेठ को क्रोध आ गया। वह बड़बड़ाते हुए बोला-यह बाबा तो ढोंगी किस्म का मालूम होता है। हीरे मोतियों को देखा तक नहीं, लेकिन मेरे जाते ही उन पर ऐसे टूटेगा जैसे कुछ देखा ही न हो बाबा ने सेठ की बात सुन ली। उन्होंने बस इतना ही कहा कि सेठ जी आप कल आइएगा, कल आपको जवाब मिल जाएगा।
अगले दिन सेठ फल व मिठाइयां लेकर वहां पहुंचा तो बाबा उसकी लाई मिठाइयों और फलों को एकटक देखते रहे। सेठ के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वह धीरे से बोला- अजीब बात है, कल मैं महंगे हीरे-मोती लाया तो उन्हें देखा तक नहीं और मिठाइयों व फल पर बाबा की ऐसी नजर है जैसे आज तक कुछ खाया ही न हो। बाबा बोले- सेठ जी, लोभी मनुष्य दूसरों को भी अपने जैसा ही समझता है। कल मैने आपके हीरे-मोती नहीं देखे, तब भी आपने मुझे लोभी ठहराया और आज मामूली मिठाई व फल देखने पर भी लालची कहा। मैं एक मामूली संत हूं।हीरे-मोती,फल, मिठाई से मुझे कुछ लेना-देना नहीं है।
मैं समाज का दुख दूर करने में ही अपना जीवन सार्थक समझता हूं। बस आप लोगों का धन निर्धनों तक पहुंचा देता हूं। यह सुनकर सेठ लज्जित हो गया।
सेठजी और कुत्ते
एक बार सेठ के घर इनकम टैक्स की रेड पड गई.......
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इनकम टैक्स अधिकारी -: बाकी तो सेठ जी सब ठीक है पर
आपने कुत्तों को जलेबी खिलाने का खर्चा पांच लाख रूपये
जो लिखा है उससे हम संतुष्ट नही है क्या आप इसके कोई
दस्तावेज पेश कर सकते है......
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सेठ जी -: नही, इसके दस्तावेज मेरे पास नही है......
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इनकम टैक्स अधिकारी -: चलो फिर हम बात
यही रफा दफा कर लेते है इसके बदले आप हमें दस हजार
रूपये देदे.
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सेठ जी मान गए ठीक है मैं आपको दस हजार रूपये दे देता हूं
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सेठ जी ने मुनीम को आवाज लगाई
मुनीम जी इन लोगों को दस हजार रूपये दे दो और खाते में
लिख देना कुत्तों ने दस हजार रूपये की जलेबियां और
खाई
Tuesday, September 22, 2015
कैंसर ट्रीटमेंट (Cancer Treatment)
कैंसर के लिए क्या करे ?
हमारे घर में कैंसर के लिए एक बहुत अच्छी दावा है ..अब डॉक्टर ने मान लिया है पहले तो वे मानते भी नही थे; एक ही दुनिया में दावा है Anti-Cancerous उसका नाम है " हल्दी " । हल्दी कैंसर ठीक करने की ताकत रखती है ! कैसे ताकत रखती है वो जान लीजिये हल्दी में एक केमिकल है उसका नाम है कर्कुमिन (Carcumin) और ये ही कैंसर cells को मार सकता है बाकि कोई केमिकल बना नही दुनिया में और ये भी आदमी ने नही भगवान ने बनाया है ।
हल्दी जैसा ही कर्कुमिन और एक चीज में है वो है देशी गाय के मूत्र में । गोमूत्र माने देशी गाय के शारीर से निकला हुआ सीधा-सीधा मूत्र जिसे सूती के आट परत की कपड़ो से छान कर लिया गया हो । तो देशी गाय का मूत्र अगर आपको मिल जाये और हल्दी आपके पास हो तो आप कैंसर का इलाज आसानी से कर पायेंगे ।
(देशी गाय की पहचान उसकी पीठ पर हंप होता है )
अब देशी गाय का मूत्र आधा कप और आधा चम्मच हल्दी दोनों मिलाके गरम करना जिससे उबाल आ जाये फिर उसको ठंडा कर लेना । Room Temperature में आने के बाद रोगी को चाय की तरहा पिलाना है .. चुस्किया ले ले के सिप सिप कर कर । एक और आयुर्वेदिक दावा है पुनर्नवा जिसको अगर आधा चम्मच इसमें मिलायेंगे तो और अच्छा result आयेगा । ये Complementary है जो आयुर्वेद के दुकान में पाउडर या छोटे छोटे पीसेस में मिलती है ।
याद रखें इस दावा में सिर्फ देशी गाय का मूत्र ही काम में आता है विदेशी जर्सी का मूत्र कुछ काम नही आता । और जो देशी गाय काले रंग की हो उसका मूत्र सबसे अच्छा परिणाम देता है इन सब में । इस दवा को (देशी गाय की मूत्र, हल्दी, पुनर्नवा ) सही अनुपात में मिलाके उबालकर ठंडा करके कांच की पात्र में स्टोर करके रखिये पर बोतल को कभी फ्रिज में मत रखिये, धुप में मत रखिये । ये दावा कैंसर के सेकंड स्टेज में और कभी कभी थर्ड स्टेज में भी बहुत अच्छे परिणाम देती है।
जब स्टेज थर्ड क्रोस करके फोर्थ में पहुँच गया हो तब रिजल्ट में प्रॉब्लम आती है । और अगर अपने किसी रोगी को Chemotherapy बैगेरा दे दिया तो फिर इसका कोई असर नही आता ! कितना भी पिलादो कोई रिजल्ट नही आता, रोगी मरता ही है । आप अगर किसी रोगी को ये दावा दे रहे है तो उसे पूछ लीजिये जान लीजिये कहीं Chemotherapy शुरू तो नही हो गयी ? अगर शुरू हो गयी है तो आप उसमे हाथ मत डालिए, जैसा डॉक्टर करता है करने दीजिये, आप भगवान से प्रार्थना कीजिये उसके लिए .. इतना ही करे ।
अगर Chemotherapy स्टार्ट नही हुई है और उसने कोई अलोप्यथी treatment शुरू नही किया तो आप देखेंगे इसके Miraculous (चमत्कारिक रिजल्ट आते है । ये सारी दवाई काम करती है बॉडी के resistance पर, हमारी जो vitality है उसको improve करता है, हल्दी को छोड़ कर गोमूत्र और पुनर्नवा शारीर के vitality को improve करती है और vitality improve होने के बाद कैंसर cells को control करते है ।
तो कैंसर के लिए आप अपने जीवन में इस तरह से काम कर सकते है; इसके इलावा भी बहुत सारी मेडिसिन्स है जो थोड़ी complicated है वो कोई बहुत अच्छा डॉक्टर या वैद्य उसको हंडल करे तभी होगा आपसे अपने घर में नही होगा । इसमें एक सावधानी रखनी है के गाय के मूत्र लेते समय वो गर्भवती नही होनी चाहिए। गाय की जो बछड़ी है जो माँ नही बनी है उसका मूत्र आप कभी भी use कर सकते है।
ये तो बात हुई कैंसर के चिकित्सा की, पर जिन्दगी में कैंसर हो ही न ये और भी अच्छा है जानना । तो जिन्दगी में आपको कभी कैंसर न हो उसके लिए एक चीज याद रखिये के, हमेशा जो खाना खाए उसमे डालडा घी (refine oil ) तो नही है ? उसमे refined oil तो नही है ? हमेशा शुद्ध तेल खाये अर्थात सरसों ,नारियल ,मूँगफली का तेल खाने मे प्रयोग करें ! और घी अगर खाना है तो देशी गाय का घी खाएं ! गाय का देश घी नहीं !
ये देख लीजिये, दूसरा जो भी खाना खा रहे है उसमे रेशेदार हिस्सा जादा होना चाहिए जैसे छिल्केवाली डाले, छिल्केवाली सब्जिया खा रहे है , चावल भी छिल्केवाली खा रहे है तो बिलकुल निश्चिन्त रहिये कैंसर होने का कोई चान्स नही है ।
कैंसर के सबसे बड़े कारणों में से दो तीन कारण है, एक तो कारण है तम्बाकू, दूसरा है बीड़ी और सिगरेट और गुटका ये चार चीजो को तो कभी भी हाथ मत लगाइए क्योंकि कैंसर के maximum cases इन्ही के कारन है पुरे देश में ।
कैंसर के बारे में सारी दुनिया एक ही बात कहती है चाहे वो डॉक्टर हो, experts हो, Scientist हो के इससे बचाओ ही इसका उपाय है ।
महिलाओं को आजकल बहुत कैंसर है uterus में गर्भाशय में, स्तनों में और ये काफी तेजी से बड़ रहा है .. Tumour होता है फिर कैंसर में convert हो जाता है । तो माताओं को बहनों को क्या करना चाहिए जिससे जिन्दगी में कभी Tumour न आये ? आपके लिए सबसे अच्छा prevention है की जैसे ही आपको आपके शारीर के किसी भी हिस्से में unwanted growth (रसोली, गांठ) का पता चले तो जल्द ही आप सावधान हो जाइये । हलाकि सभी गांठ और सभी रसोली कैंसर नही होती है 2-3% ही कैंसर में convert होती है।
लेकिन आपको सावधान होना तो पड़ेगा । माताओं को अगर कहीं भी गांठ या रसोली हो गयी जो non-cancerous है तो जल्दी से जल्दी इसे गलाना और घोल देने का दुनिया में सबसे अछि दावा है " चुना " । चुन वोही जो पान में खाया जाता है, जो पोताई में इस्तेमाल होता है ; पानवाले की दुकान से चुना ले आइये उस चुने को कनक के दाने के बराबर रोज खाइये; इसको खाने का तरीका है पानी में घोल के पानी पी लीजिये, दही में घोल के दही पी लीजिये, लस्सी में घोल के लस्सी पी लीजिये, डाल में मिलाके दाल खा लीजिये, सब्जी में डाल के सब्जी खा लीजिये । पर ध्यान रहे पथरी के रोगी के लिए चुना बर्जित है ।
स्वदेशी और असहयोग
विश्व की 5 महाशक्ति जापान अमेरिका फ्रांस रुस चीन ने विदेशी गुलामी से निजात पाने और अपने देश को शक्तिशाली बनाने में मात्र इस कारण से सफल रहे कि उनके देश के लोगो ने प्रण किया कि वह जो भी वस्तु प्रयोग करेंगे स्वदेशी वस्तु का प्रयोग करेंगे।
स्वदेशी वस्तु का प्रयोग करने से सबसे बडा लाभ यह है कि जो बडी बडी विदेशी कंपनी लुट रही है उनकी आर्थिक मदद कम होते होते बंद हो जाती है जिस कारण से उनका उस देश में व्यापार चलाने में कोई लाभ नही रहता जिस कारण से वह अपना कारोबार समेट लेती है और लुट बंद हो जाती है | विदेशी कंपनी तब तक ही टिकी रहती है जब तक उन्हें लाभ प्राप्त होता रहे |
विश्व कि महाशक्ति जापान मे भी यह स्वदेशी आंदोलन चला | 250 वर्ष पहले जापान भी राजा की गलतियों के कारण 5-6 देशों की गुलामी के दुष्च्रक में फँस गया तब 1858 में मैजी के नेत्रत्व में आंदोलन चला तब विदेशी फौजो ने उनका आंदोलन सैनिक युद्ध में दबा दिया तब उन्होने "स्वदेशी वस्तुओ" का प्रयोग का आंदोलन शुरु किया और जापान स्वत्रंत हो गया |
आज भी जापानी दूध की चाय नही पीते क्योंकि उनके यहाँ दूध का उत्पादन कम है और स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग के कारण से दूध दूसरे देश से नही मंगाते | उनकी स्पष्ट मान्यता है कि जो उनके देश में उपलब्ध है उसका ही प्रयोग करेंगे |
1858 में मैजी द्वारा क्रांति शुरुआत करने के बाद 2009 तक जापान ने बहुत तरक्की की क्योंकि उन्होने तकनीकी सीखी परन्तु स्वंय की स्वदेशी भाषा जापानी में सीखी| जापान में बचपन से पढाया जाता है कि जापानी होना क्या है ? स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग से क्या लाभ है |
अमेरिका भी अग्रेजों का गुलाम था| जार्ज वॉशिंगटन के नेत्रत्व में 1776 में आज़ादी का आंदोलन शुरु हुआ जिसमे अँग्रेज़ी वस्तुओ का सम्पूर्ण बहिष्कार तथा स्वदेशी वस्तुओ का प्रयोग का संकल्प बडी बडी सभाओं में किया जाने लगा| लोगो में सिर्फ स्वदेशी वस्तुओ के प्रयोग की भावना कूट कूट के भर गई कि बहुत ठंड पढने पर भी गर्म अमेरिकी कपडा नहीं मिला तो उन्होने नहीं पहना और हजारों व्यक्ति ठंड से ठिठुर कर मर गये पर अंग्रेजी वस्र्त नहीं पहना| अमेरिका स्वदेशी की भावना से ही स्वत्रंत हुआ और सर्वोच्य शक्ति बना है |
Monday, September 21, 2015
गाय के घी के फायदे
देसी गाय के घी को रसायन कहा गया है। जो जवानी को कायम रखते हुए, बुढ़ापे को दूर रखता है। गाय के घी में स्वर्ण छार पाए जाते हैं जिसमे अदभुत औषधिय गुण होते है, जो की गाय के घी के इलावा अन्य घी में नहीं मिलते । गाय के घी से बेहतर कोई दूसरी चीज नहीं है। गाय के घी में वैक्सीन एसिड, ब्यूट्रिक एसिड, बीटा-कैरोटीन जैसे माइक्रोन्यूट्रींस मौजूद होते हैं। जिस के सेवन करने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है। गाय के घी से उत्पन्न शरीर के माइक्रोन्यूट्रींस में कैंसर युक्त तत्वों से लड़ने की क्षमता होती है।
यदि आप गाय के 10 ग्राम घी से हवन अनुष्ठान (यज्ञ) करते हैं तो इसके परिणाम स्वरूप वातावरण में लगभग 1 टन ताजा ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकते हैं। यही कारण है कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने कि तथा, धार्मिक समारोह में यज्ञ करने कि प्रथा प्रचलित है। इससे वातावरण में फैले परमाणु विकिरणों को हटाने की अदभुत क्षमता होती है।
गाय के घी के अन्य महत्वपूर्ण उपयोग :–
1.गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।
2.गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है।
3.गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है।
4.20-25 ग्राम घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांझे का नशा कम हो जाता है।
5.गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है।
6.नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तारो ताजा हो जाता है।
7.गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बहार निकल कर चेतना वापस लोट आती है।
8.गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है।
9.गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है।
10.हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ढीक होता है।
11.हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी।
12.गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है।
13.गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है
14.गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है।
15.अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें।
16.हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा।
17.गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है।
18.जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, हर्दय मज़बूत होता है।
19.देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है।
20.संभोग के बाद कमजोरी आने पर एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच देसी गाय का घी मिलाकर पी लें। इससे थकान बिल्कुल कम हो जाएगी।
21.फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है।गाय के घी की झाती पर मालिस करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायक होता है।
22.सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा।
23.दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ढीक होता है। सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, सर दर्द ठीक हो जायेगा।
24.यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है। वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है।
25.एक चम्मच गाय का शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है।
26.गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक मलहम कि तरह से इस्तेमाल कर सकते है। यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है।
27.गाय का घी एक अच्छा(LDL)कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है। अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार,नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को संतुलित करता है।
28.घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा कुनकुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है।
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