Wednesday, October 14, 2015

पाप की विक्री


   एक बार कवि कालिदास बाजार में घूमने निकले। वहां उन्होंने एक स्त्री को एक घड़ा और कुछ कटोरियां लिए ग्रहकों के इंतजार में बैठे देखा कालिदास यह देखकर परेशानी में पड़ गए। वह उस स्त्री के पास गए।  उन्होंने वहां जाकर पूछा कि बहिन तुम क्या बेचती हो उस स्त्री ने कहा मैं पाप बेचती हूं मैं स्वयं लोगों से कहती हूं कि मेरे पास पाप हैं, मर्जी हो तो ले लो। लोग रुचि से ले जाते हैं।इस जबाव को सुनकर कालिदास उलझन में पढ़ गए। उन्होंने पूछा कि घड़े में कैसे पाप हो सकता है स्त्री बोली, हां होता है,जरूर होता है देखो मेरे आठ घड़े में आठ पाप भरे हैं।बुद्धिमान,पागलपन,लड़ाई-झगड़े,बेहोशी, विवेक का नाश, सदगुण का नाश, सुखों का अंत औ नर्क में ले जाने वाला दुष्कर्म और भी हैरानी में पड़ते हुए कालिदास ने पूछा, अरे बहिन।इतने सारे पाप बताती हैं आप, तो आखिर इन घड़ों में है क्या स्त्री बोली, शराब, वह शराब ही उन सभी पापों की जननी है। जो शराब पीता है, वह व्यक्ति इन आठ पापों का शिकार हो जाता है कालिदास उस स्त्री की चतुराई को देखकर दंग रह गए।

Sunday, October 11, 2015

देने वाला जब भी देता


एक गाँव में रामू नाम का एक किसान रहता था,वह बहुत ही ईमानदार और भोला भाला था, वह सदा ही दूसरों की सहायता करने के लिए तैयार रहता था, एक बार की बात है कि शाम के समय वह दिशा मैदान (शौच) के लिए खेत की ओर गया, दिशा मैदान करने के बाद वह ज्योंही घर की ओर चला त्यों ही उसके पैर में एक अरहर की खूँटी (अरहर काटने के बाद खेत में बचा हुआ अरहर के डंठल का थोड़ा बाहर निकला हुआ जड़ सहित भाग) गड़ गई, उसने सोचा कि यह किसी और के पैर में गड़े इससे अच्छा है कि इसे उखाड़ दूँ, उसने जोर लगाकर खूँटी को उखाड़ दिया, खूँटी के नीचे उसे कुछ सोने कीअशरफियाँ दिखाई दीं,उसकेदिमाग में आया कि यह पता नहीं किसका है मैं क्यों लूँ अगर ये अशरफियाँ मेरे लिए हैं तो जिस राम ने दिखाया,वह घर भी पहुँचाएगा (जो राम दीखाई है  उसे घरे पहुँचाएगे) ...

इसके बाद वह घर आकर यह बात अपने पत्नी को बताई, रामू की पत्नी उससे भी भोली थी; उसने यह बात अपने पड़ोसी को बता दी, पड़ोसी बड़ा ही घाघ था, रात को जब सभी लोग खा-पीकर सो गए तो पड़ोसी ने अपने घरवालों को जगाया और कहा, ”चलो, हमलोग अशरफी कोड़ (खोद) लाते हैं,” पड़ोसी और उसके घरवाले कुदाल आदि लेकर खेत में पहुँच गए, उन्होंने बताई हुई जगह पर कोड़ा (खोदा), सभी अवाक थे क्योंकि वहाँ एक नहीं पाँच-पाँच बटुलियाँ (धातु का एक पात्र) थीं पर सबमें अशरफियाँ नहीं अपितु बड़े-बड़े पहाड़ी बिच्छू थे, पड़ोसी ने कहा कि रामू ने हम लोगों को मारने की अच्छी योजना बनाई थी, हमें इसका प्रत्युत्तर देना ही होगा, उसने अपने घरवालों से कहा कि पाँचों बटुलियों को उठाकर ले चलो और रामू का छप्पर फाड़कर इन बिच्छुओं को उसके घर में गिरा दो ताकि इन बिच्छुओं के काटने से मियाँ-बीबी की इहलीला समाप्त हो जाए, घरवालों ने वैसा ही किया और रामू के छप्पर को फाड़कर बिच्छुओं को उसके घर में गिराने लगे, लेकिन धन्य है ऊपरवाला और उसकी लीला, जब ये बिच्छू घर में आते थे तो अशरफी बन जाते थे, सुबह-सुबह जब रामू उठा तो उसने अशरफियों को देखा, उसने भगवान को धन्यवाद दिया और अपनी पत्नी से कहा, ”देखी! देने वाला जब भी देता, देता छप्पर फाड़ के,”

निरपेक्ष दान


                               राजा जानुश्रुति अपने समय के महान दानी थे।एक शाम वह महल की छत पर विश्राम कर रहे थे,तभी सफेद हंसों का जोड़ा आपस में बात करता आकाश-मार्ग से गुजरा हंस अपनी पत्नी से कह रहा था।क्या तुझे राजा जानुश्रुति के शरीर से निकल रहा यश प्रकाश नहीं दिखाई देता। बचकर चल, नहीं तो इसमें झुलस जाएगी।हंसिनी मुस्कराई, प्रिय मुझे आतंकित क्यों करते हो क्या राजा के समस्त दानों में यश निहित नहीं है, इस लिए मैं ठीक हूं जबकि संत रैक्व एकांत साधना लीन हैं उनका तेज देखते ही बनता है।व हीं सच्चे अर्थों में दानी हैं।जानुश्रुति के ह्दय में हंसो की बातचीत कांटों की तरह चुभी। उन्होंने सैनिकों को संत रैक्व का पता लगाने का आदेश दिया। बहुत खोजने पर किसी एकांत स्थान में वह संत अपनी गाड़ी के नीचे बैठे मिले।जानुश्रुति राजसी वैभव से अनेक रथ, घोड़े, गौ और सोने की मुद्राएं लेकर रैक्व के पास पहुंचे। रैक्व ने बहुमूल्य भेटों को अस्वीकार करते हुए कहा कि मित्र यह सब कुछ ज्ञान से तुच्छ है ज्ञान का व्यापार नहीं होता। राजा शर्मिंदा होकर लौट गए कुछ दिन बाद वह खाली हाथ, जिज्ञासु की तरह रैक्व के पास पहुंचे। रैक्व ने राजा की जिज्ञासा देखकर उपदेश दिया कि दान करो,किंतु अभिमान से नहींउदारता की, अहं से नहीं, उन्मुक्त भाव से दान करो। राजा रैक्व की बात सुनकर प्रभावित हुए और लौट गए दान हमेशा निश्छल भाव से करना चाहिए।